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Sunday, February 20, 2022

कविता - सब स्वाहा स्वाहा कर दे


             कविता -  सब स्वाहा स्वाहा कर दे 

प्रचंड युद्ध घोष है,तू पापियों का नाश कर दे
चला के दिव्य अस्त्र अब तू , पाप सारे राख कर दे
हां युद्ध में सब तेरे , पर साथ ये अधर्म के
ले उठा गांडीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

वीर के जीवन का , प्रमाण युद्ध होता है
कल्याण सब का पाप के,  विनाश से ही होता है
है घमंड हसी में इनके , इनको तू विलाप कर दे
ले उठा गाण्डीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

अन्याय रोकने का सामर्थ्य,  जिसमें होता है
भूल कर पराक्रम,  जब ओ आंख मुंद सोता है
वध से ही तो इनके, गरिमा है रण भूमि की
ले उठा गाण्डीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

सम्पूर्ण शांति हेतु , युद्ध ही तो सार है
अधर्मियों के रक्त से, निर्मल होता संसार है
धर्म सेना संग तेरे,सिंह की दहाड़ कर दे
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

तेरे हृदय की गति , कम होती क्यों जा रही
रण क्षेत्र में आकर कभी, रोते नहीं महारथी
किस हेतु तू आया यहाँ , स्मरण ये तू कर ले
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।



पाप का भागी नहीं तू, सब कारण स्वयं मैं काल हूँ
ले देख दिव्य चक्षु से, मैं विकराल स्वयं महाकाल हूँ
करके समर्पित मुझमे स्वयं को, जैसे कहु तू कर दे
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।




(यह कविता विश्व के सबसे बड़े प्रसंग श्री गीता पर आधारित है। श्री गीता को शब्दो में समेट पाना असंभव  है। बस कुछ पंक्तिया इस पर लिख सका इससे बडी बात और क्या होगी।)

महाराज छत्रपति शिवाजी की जयंती पर  धर्म रक्षक, तेजश्वी ऊर्जा के पुंज, शौर्य की परिभाषा महान छत्रपति शिवाजी के स्मरण में सभी पाठकों के समक्ष ये कविता प्रस्तुत है। आप हमेशा हमारे आदर्श रहेंगे।

जय श्री कृष्णा🙏
जय महाकाल 🙏
जय भवानी, जय शिवाजी 🙏

* कविता में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो तो अवश्य बताये। पाठकों के सुझाओं का हमेशा स्वागत रहेगा।


मेरी अन्य रचनाएँ भी अवश्य पढ़े। (धन्यवाद )


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कविता - वीर