हो गया है युद्ध घोषरण भूमि को कूज किया जायें,इस धर्म अधर्म के युद्ध मेंनिश्चित धर्म कि विजय कि जायें।
कह दो माताओं बहनों सेतैयार आरात्रिक थाल की जाए,वीरों को जाना है रण मेंशीघ्र ही विजय तिलक कि जायें।लेकर आओ अस्त्र-शस्त्र सबइनकी भी प्यास बुझाई जाए,शत्रु रक्त कि धारो सेरण भूमि नहेलायी जायें।कुरुक्षेत्र कि भूमि कोसन्देश एक भिजवा दी जायें,आंख मुंद कर बैठे अब येयदि रक्तपात ना देखी जायें।चैन से मै ना सो पाया हूँना जाने कितने वर्षो से,तब शीतल होगा ह्दय मेराजब कुरुवंश का नाश हो जायें।अंतर्मन में जलती ज्वाला मेंहस्तिनापुर राख हो जायें,जो भी हो परिणाम युद्ध काबस प्रचंड महासंग्राम हो जायें।ना भूल सका हूँ लाक्षा गृह कोद्युत क्रीड़ा सभा ना भुला जायेखुले केस है द्रौपदी केह्रदय विषाद कि अग्नि जलाये।अज्ञातवास का विष पिया हैवो पीड़ा कैसे बतलाई जायें,जिस आग में तपता है तन मेराउसे युद्ध ही शीतल कर पाए।महादेव कि है सौगंधजो होना है ओ हो जायेंयमदूत स्वयं रण को आयेतो लौट के वापस जा न पाएगा।है केशव! अब मुझको जाने दोउस रस्ते पर जो कुरुक्षेत्र ले जायें,यही था जीवन का लक्ष्य मेराकि नियति मुझे रणक्षेत्र ले जायें।
कलम - विकास पटेल
*यह कविता महाभारत के उस योद्धा पर आधारित है जो हमेशा चाहते थे कि युद्ध हो। उनके हृदय कि अग्नि कभी शांत नहीं हुई। जब श्री कृष्ण ने यह कहा कि शांति समझौता अस्वीकार कर दिया गया है उस समय उनके मनोदशा और संवाद को दर्शाने कि कोशिश कि गई है। किसी कि भावनाओ को शब्दो में बता पाना नामुमकिन है, फिर कुछ पंक्तिया इसमें कभी भी सक्षम नही हो सकती।यह कविता भीम दर्पण महारथी भीम के अंतरात्मा का प्रतिबिम्ब है।
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