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Friday, December 24, 2021

कविता - रणक्षेत्र

                                                                   कविता  -  रणक्षेत्र 
हो गया है युद्ध घोष 
रण भूमि को कूज किया जायें,
इस धर्म अधर्म के युद्ध में
निश्चित धर्म कि विजय कि जायें।

 कह दो माताओं बहनों से
 तैयार आरात्रिक थाल की जाए,
 वीरों को जाना है रण में
 शीघ्र ही विजय तिलक कि जायें।

 लेकर आओ अस्त्र-शस्त्र सब
 इनकी भी प्यास बुझाई जाए,
 शत्रु रक्त कि धारो से
 रण भूमि नहेलायी जायें।

कुरुक्षेत्र कि भूमि को
सन्देश एक भिजवा दी जायें,
आंख मुंद कर बैठे अब ये
यदि रक्तपात ना देखी जायें।

चैन से मै ना सो पाया हूँ
ना जाने कितने वर्षो से,
तब शीतल होगा ह्दय मेरा
जब कुरुवंश का नाश हो जायें।

अंतर्मन में जलती ज्वाला में
हस्तिनापुर राख हो जायें, 
जो भी  हो परिणाम युद्ध का
बस प्रचंड महासंग्राम हो जायें।

ना भूल सका हूँ लाक्षा गृह को
द्युत क्रीड़ा सभा ना भुला जाये 
खुले केस है द्रौपदी के
ह्रदय विषाद कि अग्नि जलाये।

अज्ञातवास का विष पिया है
 वो पीड़ा कैसे बतलाई जायें,
जिस आग में तपता है तन मेरा
उसे युद्ध ही शीतल कर पाए।

महादेव कि है सौगंध
जो होना है ओ हो जायें
यमदूत स्वयं रण को आये
तो लौट के वापस जा न पाएगा।

है केशव! अब मुझको जाने दो
उस रस्ते पर जो कुरुक्षेत्र ले जायें,
यही था जीवन का लक्ष्य मेरा
कि नियति  मुझे रणक्षेत्र  ले जायें।

कलम - विकास पटेल 

*यह कविता महाभारत के उस योद्धा पर आधारित है जो हमेशा चाहते थे कि युद्ध हो।  उनके हृदय कि अग्नि कभी शांत नहीं हुई। जब श्री कृष्ण ने यह कहा कि शांति समझौता अस्वीकार कर दिया गया है उस समय उनके मनोदशा और संवाद को दर्शाने कि कोशिश कि गई है। किसी कि भावनाओ को शब्दो में बता पाना नामुमकिन है, फिर कुछ पंक्तिया इसमें कभी भी सक्षम नही हो सकती।यह कविता भीम दर्पण महारथी भीम के अंतरात्मा का प्रतिबिम्ब है।


* किसी पी प्रकार कि त्रुटि एवं सुझाओ का स्वागत रहेगा।

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