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Saturday, May 21, 2022

कविता- राधेय ' भाग -3'

                  कविता- राधेय ' भाग 3'


लो बज चुकी रणभेरी है, युद्ध की कुरुक्षेत्र में।
अनगिनत शीश कटने लगे हैं,पावन धरा रण क्षेत्र में ।।


सब ओर रुदन है,  चीख है, क्रोध है,संवेग है।
पर रोक सकता ना कोई वीरों के शर की वेग है।।

पर रो पड़ी देख कर के,नियती भी पक्ष मेरा।
साथ जिसके श्री हरि , वो पार्थ अंतिम लक्ष्य मेरा।।

और क्या होंगी इससे भी बड़ी, विडंबना संसार में।
जो है स्वयं महादेव ,वो आ कर खड़े मेरे मार्ग में।।

और हो रही है नियति मेरी ना जाने इतनी क्यों कठोर
ले रही परीक्षा मेरी,  प्रतिदिन घोर अति घनघोर।।

 हाँ आकर खड़ी है राजमाता, नैनों में अश्रु  भरे।
कहती है मुझसे आ जा तू,निज जननी की ऊँगली धरे।।

पर हो गया  है कर्ण का हृदय अब पाषण है।
या रहूँगा  मैं  या, पार्थ लेगा मेरे प्राण है।।

और आ खड़े है द्वार पे, स्वयं यहाँ पे सुरपति।
मांगते कुण्डल कवच, मुझसे मेरी है भूपति।।

पर वचनों से मैं हूं बंधा,पीछे हटना भी  पाप है।
जो बचा है छीन मुझसे,जीवन ये देता श्राप है।।

पर चीर कर भी दूंगा मैं छाती के अपने मांस को।
पर सह नहीं सकता ये कर्ण , एक भिक्षा के उपहास को।

हाँ, हो गया है अमर कर्ण, दान के इस कर्म से।
सामने मेरे स्वर्ग है,नज़रे झुकाये शर्म से।।

पुत्र गंगा सोए हैं अब,पार्थ की शर सैया में।
राधेय चल पड़ा है अब,चढ़ने को रण की नैया में।।


🖋️विकास पटेल


यह कविता महारथी कर्ण पर आधारित है। एक ऐसा नाम जो अमर है हमेशा हमेशा के लिए।यह तृतीय भाग है जो कर्ण के जीवन आये हुए विकट परिस्थितियों को बताते है ।आप सभी से अनुरोध है की इस कविता को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।



*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।









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कविता - राधेय 'भाग 2'

                      

                         राधेय   (भाग -2)


पर है समाज ये कुटिल,ना जाने कितने छल किये।
जात पात करके इसने,स्वर्ण कितने मल किये।।1

ना देखता ये बाहुबल, देखता ये जन्म है।
ना देखता है गुण कभी, ना देखता ये कर्म है।।2

ना हुआ कभी यहाँ, चुनाव श्रेष्ठ का धर्म से।
क्षत्रिय होता है यहाँ,क्यों नहीं कोई कर्म से।।3

सूत पुत्र कह के मुझकों, विद्या से वंचित किया।
कैसे कहुँ उस गुरु ने, ज्ञान है संचित किया।।4

और शिष्य से कोई गुरु,पक्षपात क्यों करें।
मांग कर अंगूठा, एकलव्य से कैसे धरे।।5

हाँ था असंभव टाल सकना लेख नियती का लिखा
सामने कुछ था नहीं बस एक पथ मुझकों दिखा।।6

और भाग्य मुझकों ले चला आप ही भार्गव शरण।
ब्राह्मण नहीं था मैं इसी से,आ गया मुझ तक मरण।।7

जिस गुरु से ज्ञान पाया वे रुष्ट मुझसे हो गए
जो कीमती मोती थे मेरे दूर मुझसे हो गए।।8

दे श्राप ओ कहने लगे जो छल गया है मुझकों तू
आन पड़ने पर समय सब भूल जाएगा उनको तू।।9

पर क्या है इसमें दोष मेरा, ये सब तो मेरा भाग्य था।
ना जाने क्या था दोष मेरा,जो रुष्ट मेरा आराध्य था।।10





Thursday, May 12, 2022

कविता - राधेय भाग 1(परिचय )

       
                              राधेय  - परिचय 

                                                                                  
नाम राधेय मेरा , दानवीर मैं कर्म से।
जो मित्रता पे बात आये , लड़ जाऊ मैं धर्म से।।1

परशुराम शिष्य हूं , सारथी का पूत मैं।
मृत्यु से जो ना डरे, ऐसा वीर सूत मैं।।2

 जन्म किसने है दिया,  परवाह इसकी है नहीं।
 दूध जिसका है लहू में,संतान मैं उस माँ का ही।।3

चूका सकूंगा मैं कहाँ , ममता का ऋण माँ का कभी।
सौ कर्ण भी आप जायें तो,ना मुक्त हो पाए सभी।।4

भाग्य का मुझे भय नहीं,शत्रु को भय विजय का है।
जीवन का मोह  है नहीं , ना लोभ मुझकों जय का है।।5

सूर्य का मैं तेज हूं, माँ राधा  मेरी  ढाल है।
जो जीता जा सके नहीं ,  राधेय ऐसा काल है।।6

राज्य मुझकों है मिला मित्र से उपहार में।
भोगता हूं मैं उसे ,बांटकर संसार में।।7

जीवन भी दान कर दूं मैं, बस है यही  प्रण मेरा।
जो सोच लूं क्षण भर भी मैं,  जल जायें तन तत क्षण मेरा।।8

प्रशंसा मेरी क्या करूं,मेरे शर से जा के पूछ लो।
वक्ष पे लगी है जिसके जा कर के उसकी सुध लो।।9

भर सकता हूं मैं रक्त से, संसार के सिंधु सभी।
युद्ध भूमि भर दूं मैं, रिपु मुंडो से तत्काल ही।।10

पीकर के विष अपमान का, हुआ शूल है तन मेरा।
देख  समाज की कठोरता  , कोमल फूल है मन मेरा।।11

दिव्य तेज मेरे सीने में, घर है कुण्डल किरणों का।
सिंह सा शत्रु से भीड़ता, झुण्ड हो जैसे हिरनो का।।12

कोई कहे वो है महारथी,तो उससे जा कहो।
जाकर के कर्ण  के धनुष की,शर की ताप तुम सहो।।13

रूद्र से लड़ने को भी,तैयार रहता कर्ण है।
युद्ध भूमि में शत्रु जैसे , धूल है और पर्ण है।।14

                       

🖋️विकास पटेल


यह कविता महारथी कर्ण पर आधारित है। एक ऐसा नाम जो अमर है हमेशा हमेशा के लिए।यह प्रथम भाग है जिसे एक परिचय के रूप में लिखा गया है। आप सभी से अनुरोध है की इस कविता को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।



*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।









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कविता - वीर