नाम राधेय मेरा , दानवीर मैं कर्म से।
जो मित्रता पे बात आये , लड़ जाऊ मैं धर्म से।।1
परशुराम शिष्य हूं , सारथी का पूत मैं।
मृत्यु से जो ना डरे, ऐसा वीर सूत मैं।।2
जन्म किसने है दिया, परवाह इसकी है नहीं।
दूध जिसका है लहू में,संतान मैं उस माँ का ही।।3
चूका सकूंगा मैं कहाँ , ममता का ऋण माँ का कभी।
सौ कर्ण भी आप जायें तो,ना मुक्त हो पाए सभी।।4
भाग्य का मुझे भय नहीं,शत्रु को भय विजय का है।
जीवन का मोह है नहीं , ना लोभ मुझकों जय का है।।5
सूर्य का मैं तेज हूं, माँ राधा मेरी ढाल है।
जो जीता जा सके नहीं , राधेय ऐसा काल है।।6
राज्य मुझकों है मिला मित्र से उपहार में।
भोगता हूं मैं उसे ,बांटकर संसार में।।7
जीवन भी दान कर दूं मैं, बस है यही प्रण मेरा।
जो सोच लूं क्षण भर भी मैं, जल जायें तन तत क्षण मेरा।।8
प्रशंसा मेरी क्या करूं,मेरे शर से जा के पूछ लो।
वक्ष पे लगी है जिसके जा कर के उसकी सुध लो।।9
भर सकता हूं मैं रक्त से, संसार के सिंधु सभी।
युद्ध भूमि भर दूं मैं, रिपु मुंडो से तत्काल ही।।10
पीकर के विष अपमान का, हुआ शूल है तन मेरा।
देख समाज की कठोरता , कोमल फूल है मन मेरा।।11
दिव्य तेज मेरे सीने में, घर है कुण्डल किरणों का।
सिंह सा शत्रु से भीड़ता, झुण्ड हो जैसे हिरनो का।।12
कोई कहे वो है महारथी,तो उससे जा कहो।
जाकर के कर्ण के धनुष की,शर की ताप तुम सहो।।13
रूद्र से लड़ने को भी,तैयार रहता कर्ण है।
युद्ध भूमि में शत्रु जैसे , धूल है और पर्ण है।।14
🖋️विकास पटेल
यह कविता महारथी कर्ण पर आधारित है। एक ऐसा नाम जो अमर है हमेशा हमेशा के लिए।यह प्रथम भाग है जिसे एक परिचय के रूप में लिखा गया है। आप सभी से अनुरोध है की इस कविता को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।
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