Thursday, June 17, 2021

मंजिल


                       कविता - मंजिल



हाँ , थका हुआ तू बैठा है 
पर कब तक ऐसे बैठेगा।
यूं करके आंखे लाल तू अपनी 
कब तक खुद को कोसेगा।।1

सिर पर रख कर हाथ तू अपने
कब तक किस्मत पर रोयेगा।
हो ना सकेगा कुछ अब कह कर 
कब तक ऐसे सोयेगा।।2

घोर निराशा में रहकर
कुछ ना बदल तू पायेगा 
जो आँख मुंद कर बैठ गया तू 
लक्ष्यहीन हो जायेगा।।3

कोसेगा जो तू किस्मत को
कभी ना आगे  आएगा।
दे कर दोष दूसरों को
नया सिख ना पायेगा।।4

एक बार तू हारा है 
पर आगे तू ना हारेगा
बैठेगा जो हो हताश तू 
जीत की आस भी हारेगा।।5

दौड़ नहीं तो चल तो सही
तू भी आगे बढ़ जायेगा।
हाँ थोड़ी सी देर सही
अपनी मंजिल तू पायेगा।।6

कुछ तो रही है कमी कहीं पे
जो तू ख़ोज ये पायेगा |
काम वहीं पर करके फिर से 
जीत को गले लगाएगा।।7

चारो ओर अंधेरा है 
तू खुद ही बन जा उजियारा।
बन के सूरज चिर निकल
ये घोर हार का अँधियारा।।8

कस कर बांध कमर अपनी
फिर देखेगा  ये जग सारा।
मिलती ही है मंजिल उसको
जो देख हार भी ना हारा ।।9


* हो सकता है कविता में कुछ त्रुटि हो, अतः आप सभी पाठकों के सुझाओं का स्वागत है।


कलम - विकास पटेल 👈(click here to go to                                             my yourquote )

Monday, March 22, 2021

माटी का पुतला

                     कविता - माटी का पुतला 

ये माटी का पुतला 
पल भर में राख हो जाता है ।
बांध कर हमें यादों की जंजीरों में 
खुद आज़ाद हो जाता है ।।

उसके चेहरे हमें याद आते है 
ओ हमेशा के लिए हमें भूल जाता है।
रातों में जागने को मजबुर कर अपनो को 
खुद चैन कि नींद सो जाता है ।।

जिसे देख कर खुश होते थे 
उसकी तस्वीर देख आंख भर जाता है ।
तोड़ कर हमसे सारे रिश्ते 
ओ नए सफर को चला जाता है ।।

कुछ सपने जल जाते है
कोई आश रह जाता है ।
भूल जाता है सब कुछ ओ
खुद याद बन दिलो मे रह जाता है

ओ शख्स भले ही जैसा था
पर अब तो सिर्फ रुलाता है ।
शायद ओ खुश है सब कुछ छोड़
तभी तो वापस ना आता है ।।

रूह बना दी गई अमर
और देह खाक हो जाता है ।
ये माटी का  पुतला
पल भर मे राख हो जाता है ।।

ये माटी का पुतला............





*हो सकता हैं कविता मे कुछ कमिया हो, अतःआप सभी पाठको के सुझाओ का स्वागत हैं ।

कलम - विकास पटेल 






कविता - वीर