Monday, March 22, 2021

माटी का पुतला

                     कविता - माटी का पुतला 

ये माटी का पुतला 
पल भर में राख हो जाता है ।
बांध कर हमें यादों की जंजीरों में 
खुद आज़ाद हो जाता है ।।

उसके चेहरे हमें याद आते है 
ओ हमेशा के लिए हमें भूल जाता है।
रातों में जागने को मजबुर कर अपनो को 
खुद चैन कि नींद सो जाता है ।।

जिसे देख कर खुश होते थे 
उसकी तस्वीर देख आंख भर जाता है ।
तोड़ कर हमसे सारे रिश्ते 
ओ नए सफर को चला जाता है ।।

कुछ सपने जल जाते है
कोई आश रह जाता है ।
भूल जाता है सब कुछ ओ
खुद याद बन दिलो मे रह जाता है

ओ शख्स भले ही जैसा था
पर अब तो सिर्फ रुलाता है ।
शायद ओ खुश है सब कुछ छोड़
तभी तो वापस ना आता है ।।

रूह बना दी गई अमर
और देह खाक हो जाता है ।
ये माटी का  पुतला
पल भर मे राख हो जाता है ।।

ये माटी का पुतला............





*हो सकता हैं कविता मे कुछ कमिया हो, अतःआप सभी पाठको के सुझाओ का स्वागत हैं ।

कलम - विकास पटेल 






12 comments:

Unknown said...

Gajab

Unknown said...

👍👍👍

Unknown said...

Great 👌

Unknown said...

Waah

Kaushalendra Pratap Singh said...

Jabardast ladke

Unknown said...

Jabardast

Unknown said...

बहूत सुंदर रचना डियर☺

Unknown said...

सुंदर लेखनी 👌👌👌👌

Unknown said...

Bahut sunder😂😂

Unknown said...

✍️✍️👌👌👌

Unknown said...

Very nice sir...bohot sundar.truth of life

Unknown said...

Very nice sir ji..

कविता - वीर