सीखता जा रहा हूं मैं
आगे बढ़ते हुए जिंदगी में
दो सक्ल लेकर लोग
जिया कैसे करते हैं।
मिलता हैं ज़ब थोड़ा सा
रंग बदल सा जाता है
जिसने खींचा था हाथ कभी
उससे ही नफरत करते हैं।
बुरे वक़्त में साथ था जो
दिन बदला उसका मोल गया।
वो उड़ते हुए हवा में अब
जमीन न देखा करते हैं।
जो चिड़िया कभी सहारा था
सुने और अकेलेपन का
भीड़ साथ है खड़ी हुई
पानी ना पूछा करते है।
जिसने पोछे हैं आँसू उनके
उसके आँखो से धार बहे
काले ऐनक के आड़ में वो
नजरें फेरा करते हैं।
मसाल जलाकर अंधेरों में
जो आगे आगे चलता था
उनके जब से सितारे चमके
तुम फीके हो कहते फिरते हैं।
हर शख्स मतलबी है यहाँ पे
काम है तुमसे, नाम तुम्हारा
भगवान जिसे वो कहते थे
उसे पत्थर की मूरत कहते हैैं।
यही लिखा है इंसानों के
अर्थ और परिभाषा में
वक़्त बदलते ही इनके
रंग बदलने लगते हैं।
वक़्त बदलते ही इनके
रंग बदलने लगते हैं।।
**हो सकता है कविता मे कुछ त्रुटि हो अतः पाठको के सुझावो का स्वागत है।
कलम -विकास पटेल
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Thank you
8 comments:
Right.aisa hi hota h.shi h bhaiya
💯 right 👍
Kavita me kisi bhi prakar ki truti nhi hai kavita vakai me bahut achchi hai
Nice one sir..😍😍
👌👏👍right h bhaiya
Very nice sir ji 🙏
👌🏻👌🏻
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