Tuesday, April 18, 2023

Poem - I am a soldier






( POEM - I'm A Soldier )


I am a soldier

Only peace I admire.

Cos I know, my arms unleash

The turbulent Fire.


I am a soldier

Soft but killing machine.

I have to save everything

With destruction within.


I am a soldier

I Am hard to define

I am devil of hell

With a heart,  divine.

 

I am a soldier

I know how I have to go

Where I have to bow down

Whom I have to blow.


I am a soldier

I am an ultimate friend

I become god of death

Where the enemies stand.


I am a soldier

The greatest lover  of the land

People live for their belongings

I die for the motherland.


I am a soldier

I do not have any religion

With friends I celebrate all festivals

For enemies I change the season.


I am a soldier 

I Have a lot to say

And don't worry I am here

You stay happy and gay.


🖋️Vikas Patel


A poem dedicated to the soldiers.

If you like the poem let me know in the comment section.


Yourquote 👈(Click Here) 

Instagram 👈(Click Here)

Facebook  👈(Click Here)


Saturday, June 18, 2022

कविता - मणिकर्णिका

                 (कवितामणिकर्णिका)

मणिकर्णिका नाम सुनो
 तुम साहस की पहचान सुनो,
बाते करती तलवारो से जो
 तुम उस रानी का नाम सुनो।। 1

स्त्री जाती की ताकत का
जिसने परचम था लहराया
अवतार भवानी माँ की जो
तुम उस रानी का नाम सुनो।।2

खेल खिलौनो वाला तो 
बच्चे खेला करते हैं,
जो खेलती थी हथियारों से 
तुम उस रानी का नाम सुनो।।3

व्याह हुआ पर नियति घोर थी 
25 में थी महारानी जो 
जो अंग्रेजो को धूल चटाती
तुम उस रानी का नाम सुनो।।4


गोरो का अन्याय देख
सन संतावान में काल बनी
जिसे देख फिरंगी कांपा करते
तुम उस रानी का नाम सुनो।।5


लड़ने पर जब आती थी ओ
तब रक्त प्यासी बन जाती थी
जो डरी नहीं किसी सेना से
तुम उस रानी का नाम सुनो।।6


लड़े अंत तक कई वीर
घनघोर अंधेरा था छाया
पर झुकी नहीं जो रानी
तुम उस रानी का नाम सुनो।।7


मातृभूमि की रक्षा को
लड़ी सांस अंतिम तक जो
स्वाभिमान अजेय था जिनका
तुम उस रानी का नाम सुनो।।8

महारानी लक्ष्मी बाई
झाँसी की रखवाली जो 
अमर रहेगी चिर काल तक
मणिकर्णिका नाम सुनो।।8

झाँसी की रानी नाम सुनो।।
रानी लक्ष्मी बाई नाम सुनो।।

🖋️विकास पटेल


* यह कविता बच्चों के लिए लिखी गई है, जिसमे वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई के जीवन को कुछ पंक्तियों में समेटने की तुच्छ प्रयास किया गया हैं। 



*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।



Yourquote 👈 (Click Here)
Instagram 👈(Click Here)
Facebook 👈( Click Here)
Image       👈  (Click Here)







Saturday, May 21, 2022

कविता- राधेय ' भाग -3'

                  कविता- राधेय ' भाग 3'


लो बज चुकी रणभेरी है, युद्ध की कुरुक्षेत्र में।
अनगिनत शीश कटने लगे हैं,पावन धरा रण क्षेत्र में ।।


सब ओर रुदन है,  चीख है, क्रोध है,संवेग है।
पर रोक सकता ना कोई वीरों के शर की वेग है।।

पर रो पड़ी देख कर के,नियती भी पक्ष मेरा।
साथ जिसके श्री हरि , वो पार्थ अंतिम लक्ष्य मेरा।।

और क्या होंगी इससे भी बड़ी, विडंबना संसार में।
जो है स्वयं महादेव ,वो आ कर खड़े मेरे मार्ग में।।

और हो रही है नियति मेरी ना जाने इतनी क्यों कठोर
ले रही परीक्षा मेरी,  प्रतिदिन घोर अति घनघोर।।

 हाँ आकर खड़ी है राजमाता, नैनों में अश्रु  भरे।
कहती है मुझसे आ जा तू,निज जननी की ऊँगली धरे।।

पर हो गया  है कर्ण का हृदय अब पाषण है।
या रहूँगा  मैं  या, पार्थ लेगा मेरे प्राण है।।

और आ खड़े है द्वार पे, स्वयं यहाँ पे सुरपति।
मांगते कुण्डल कवच, मुझसे मेरी है भूपति।।

पर वचनों से मैं हूं बंधा,पीछे हटना भी  पाप है।
जो बचा है छीन मुझसे,जीवन ये देता श्राप है।।

पर चीर कर भी दूंगा मैं छाती के अपने मांस को।
पर सह नहीं सकता ये कर्ण , एक भिक्षा के उपहास को।

हाँ, हो गया है अमर कर्ण, दान के इस कर्म से।
सामने मेरे स्वर्ग है,नज़रे झुकाये शर्म से।।

पुत्र गंगा सोए हैं अब,पार्थ की शर सैया में।
राधेय चल पड़ा है अब,चढ़ने को रण की नैया में।।


🖋️विकास पटेल


यह कविता महारथी कर्ण पर आधारित है। एक ऐसा नाम जो अमर है हमेशा हमेशा के लिए।यह तृतीय भाग है जो कर्ण के जीवन आये हुए विकट परिस्थितियों को बताते है ।आप सभी से अनुरोध है की इस कविता को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।



*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।









Yourquote 👈👈(click here)

Instagram👈👈(click here)

Facebook 👈👈(click.)

Picture over there  👈👈( Click here)



कविता - राधेय 'भाग 2'

                      

                         राधेय   (भाग -2)


पर है समाज ये कुटिल,ना जाने कितने छल किये।
जात पात करके इसने,स्वर्ण कितने मल किये।।1

ना देखता ये बाहुबल, देखता ये जन्म है।
ना देखता है गुण कभी, ना देखता ये कर्म है।।2

ना हुआ कभी यहाँ, चुनाव श्रेष्ठ का धर्म से।
क्षत्रिय होता है यहाँ,क्यों नहीं कोई कर्म से।।3

सूत पुत्र कह के मुझकों, विद्या से वंचित किया।
कैसे कहुँ उस गुरु ने, ज्ञान है संचित किया।।4

और शिष्य से कोई गुरु,पक्षपात क्यों करें।
मांग कर अंगूठा, एकलव्य से कैसे धरे।।5

हाँ था असंभव टाल सकना लेख नियती का लिखा
सामने कुछ था नहीं बस एक पथ मुझकों दिखा।।6

और भाग्य मुझकों ले चला आप ही भार्गव शरण।
ब्राह्मण नहीं था मैं इसी से,आ गया मुझ तक मरण।।7

जिस गुरु से ज्ञान पाया वे रुष्ट मुझसे हो गए
जो कीमती मोती थे मेरे दूर मुझसे हो गए।।8

दे श्राप ओ कहने लगे जो छल गया है मुझकों तू
आन पड़ने पर समय सब भूल जाएगा उनको तू।।9

पर क्या है इसमें दोष मेरा, ये सब तो मेरा भाग्य था।
ना जाने क्या था दोष मेरा,जो रुष्ट मेरा आराध्य था।।10





Thursday, May 12, 2022

कविता - राधेय भाग 1(परिचय )

       
                              राधेय  - परिचय 

                                                                                  
नाम राधेय मेरा , दानवीर मैं कर्म से।
जो मित्रता पे बात आये , लड़ जाऊ मैं धर्म से।।1

परशुराम शिष्य हूं , सारथी का पूत मैं।
मृत्यु से जो ना डरे, ऐसा वीर सूत मैं।।2

 जन्म किसने है दिया,  परवाह इसकी है नहीं।
 दूध जिसका है लहू में,संतान मैं उस माँ का ही।।3

चूका सकूंगा मैं कहाँ , ममता का ऋण माँ का कभी।
सौ कर्ण भी आप जायें तो,ना मुक्त हो पाए सभी।।4

भाग्य का मुझे भय नहीं,शत्रु को भय विजय का है।
जीवन का मोह  है नहीं , ना लोभ मुझकों जय का है।।5

सूर्य का मैं तेज हूं, माँ राधा  मेरी  ढाल है।
जो जीता जा सके नहीं ,  राधेय ऐसा काल है।।6

राज्य मुझकों है मिला मित्र से उपहार में।
भोगता हूं मैं उसे ,बांटकर संसार में।।7

जीवन भी दान कर दूं मैं, बस है यही  प्रण मेरा।
जो सोच लूं क्षण भर भी मैं,  जल जायें तन तत क्षण मेरा।।8

प्रशंसा मेरी क्या करूं,मेरे शर से जा के पूछ लो।
वक्ष पे लगी है जिसके जा कर के उसकी सुध लो।।9

भर सकता हूं मैं रक्त से, संसार के सिंधु सभी।
युद्ध भूमि भर दूं मैं, रिपु मुंडो से तत्काल ही।।10

पीकर के विष अपमान का, हुआ शूल है तन मेरा।
देख  समाज की कठोरता  , कोमल फूल है मन मेरा।।11

दिव्य तेज मेरे सीने में, घर है कुण्डल किरणों का।
सिंह सा शत्रु से भीड़ता, झुण्ड हो जैसे हिरनो का।।12

कोई कहे वो है महारथी,तो उससे जा कहो।
जाकर के कर्ण  के धनुष की,शर की ताप तुम सहो।।13

रूद्र से लड़ने को भी,तैयार रहता कर्ण है।
युद्ध भूमि में शत्रु जैसे , धूल है और पर्ण है।।14

                       

🖋️विकास पटेल


यह कविता महारथी कर्ण पर आधारित है। एक ऐसा नाम जो अमर है हमेशा हमेशा के लिए।यह प्रथम भाग है जिसे एक परिचय के रूप में लिखा गया है। आप सभी से अनुरोध है की इस कविता को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।



*पाठकों के सुझाओं का स्वागत रहेगा।









Yourquote 👈👈(click here)

Instagram👈👈(click here)

Facebook 👈👈(click.)

Picture over there  👈👈( Click here)



Sunday, February 20, 2022

कविता - सब स्वाहा स्वाहा कर दे


             कविता -  सब स्वाहा स्वाहा कर दे 

प्रचंड युद्ध घोष है,तू पापियों का नाश कर दे
चला के दिव्य अस्त्र अब तू , पाप सारे राख कर दे
हां युद्ध में सब तेरे , पर साथ ये अधर्म के
ले उठा गांडीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

वीर के जीवन का , प्रमाण युद्ध होता है
कल्याण सब का पाप के,  विनाश से ही होता है
है घमंड हसी में इनके , इनको तू विलाप कर दे
ले उठा गाण्डीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

अन्याय रोकने का सामर्थ्य,  जिसमें होता है
भूल कर पराक्रम,  जब ओ आंख मुंद सोता है
वध से ही तो इनके, गरिमा है रण भूमि की
ले उठा गाण्डीव तू  सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

सम्पूर्ण शांति हेतु , युद्ध ही तो सार है
अधर्मियों के रक्त से, निर्मल होता संसार है
धर्म सेना संग तेरे,सिंह की दहाड़ कर दे
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।

तेरे हृदय की गति , कम होती क्यों जा रही
रण क्षेत्र में आकर कभी, रोते नहीं महारथी
किस हेतु तू आया यहाँ , स्मरण ये तू कर ले
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।



पाप का भागी नहीं तू, सब कारण स्वयं मैं काल हूँ
ले देख दिव्य चक्षु से, मैं विकराल स्वयं महाकाल हूँ
करके समर्पित मुझमे स्वयं को, जैसे कहु तू कर दे
ले उठा गाण्डीव तू सब स्वाहा स्वाहा कर दे।।




(यह कविता विश्व के सबसे बड़े प्रसंग श्री गीता पर आधारित है। श्री गीता को शब्दो में समेट पाना असंभव  है। बस कुछ पंक्तिया इस पर लिख सका इससे बडी बात और क्या होगी।)

महाराज छत्रपति शिवाजी की जयंती पर  धर्म रक्षक, तेजश्वी ऊर्जा के पुंज, शौर्य की परिभाषा महान छत्रपति शिवाजी के स्मरण में सभी पाठकों के समक्ष ये कविता प्रस्तुत है। आप हमेशा हमारे आदर्श रहेंगे।

जय श्री कृष्णा🙏
जय महाकाल 🙏
जय भवानी, जय शिवाजी 🙏

* कविता में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो तो अवश्य बताये। पाठकों के सुझाओं का हमेशा स्वागत रहेगा।


मेरी अन्य रचनाएँ भी अवश्य पढ़े। (धन्यवाद )


*Visit my social media platforms*

Yourquote 👈(click here )
Facebook 👈(click here)
Instagram 👈(click here)
Picture over there by 👈( click here)



Saturday, January 22, 2022

कविता - आजादी





                      कविता   - आजादी

जो बात करे आजादी की, जाकर उनको बतलाओ तुम
ये राष्ट्र लहू कि धारों पर ,तैर यहाँ तक आया है।।


कितनों ने अपना तन राख किया, कितने फांसी पर झूल गए।
कितनों ने जीवन संघर्ष दिया,  कई जीवन जीना भूल गए।।
अनगिनत चिरागों के जलने पर,रोशन राष्ट्र हो पाया है 
जो बात करे आजादी की,जाकर उनको बतलाओ तुम
ये राष्ट्र लहू की धारों पर, तैर यहाँ तक आया है।।


माताओं ने दिए थे अपने, कोमल ह्दय के टुकड़ो को।
कुछ जीवन भर देख ना सके,अपने लालो के मुखड़ो को।।
प्राण दान से ही वीरों के,स्वतंत्र राष्ट्र हो पाया है
जो बात करे आजादी की, जाकर उनको बतलाओ तुम
ये राष्ट्र लहू की धारों पर,तैर यहाँ तक आया है।।


काट कर अपनी बाह सौप दी,माँ गंगा के पावन जल को
लहू से अपने सींच दिया, बिलखती बंजर इस थल को।
अथक परिश्रम से वीरों के राष्ट्र  चैन से सो पाया है।
जो बात करे आजादी की,जाकर उनको बतलाओ तुम
ये राष्ट्र लहू की धारों पर, तैर यहाँ तक आया है।।





जो बात करे आजादी की,  जाकर उनको बतलाओ तुम 
ये राष्ट्र लहू की धारो पर, तैर यहाँ तक आया है।।

                                     पंक्तिया जारी रहेंगी......
                               🖋️ लेखक - विकास पटेल 


यह कविता समर्पित है देश के उन वीर शहीदों को और  क्रांतिकारियों को जिन्होंने इस राष्ट्र के लिए अपना तन, मन, धन सब समर्पित कर दिया। जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी अपना और राष्ट्र का सिर निचे ना होने दिया। इनके नामो की सूची इतनी लम्बी है की हम पढ़ भी ना पाए। ये उन सैनिको को भी समर्पित है जिन्होंने आजादी के बाद से आज तक इस राष्ट्र की रक्षा की है। आप लोगो का कद बहुत ऊंचा है हम शायद ही वहा तक पहुंच सके। 🙏🙏💐💐💐❤️❤️

पूज्यनीय महानायक वीर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती पर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है कविता आजादी।






* पाठकों से अनुरोध -
कविता में किसी भी प्रकार कि त्रुटि हो तो जरूर बताये।

आप सभी के प्यार और साथ के लिए बहुत बहुत आभार 🙏🙏

Yourquote  👈(click here )
Facebook   👈(click here)
Instagram   👈(click here)


अन्य कविताएं भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
धन्यवाद 







Friday, December 31, 2021

कविता -यकीन रख खुद पर


यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।
ये वक़्त है उनका, दौर तेरा भी आएगा।
परवाह ना कर ज़माने की सब मतलबी है यहाँ,
अपने दम पर ही तू सपने  हकीकत कर पायेगा।।
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।।


हार जाने से शुरू होता है जीतने का सफर
दिल टूटने से ही मिलती है मजबूत होने की डगर
खास पाने के लिए खास करना पड़ता है
हौसले की मशाल से ही तू किस्मत रोशन कर पायेगा।।
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।।

मदद ना मांगना तू जमाना बड़ा बेकार है
जितना स्वीकारता है उससे ज्यादा तिरस्कार है
हसने लगेंगे तेरी मज़बूरी पर सब ठहाके लगाकर
अपनी आसुओं को पीकर ही तू मजबूत बन पायेगा
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।।

चलती है ये दुनिया मतलब की हवाओं से
लगते है जो जख्म वो ठीक होते नहीं दवाओं से
चल नहीं रहे हैं पैर तेरे,फिर भी कोशिश कर
हौसले कि बैशाखी से तू भी खड़ा हो जायेगा।
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।।

मालूम है मुझे कि कितना जलना पड़ता है 
फूल मिलते नहीं कहीं,अंगारो पे चलना पड़ता है
पैरो में पड़े छालो में कोई मरहम करने आएगा नहीं
तू आईने में देख जरा तुझे तेरा हमदर्द नजर आएगा।
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।


मिलती नहीं कभी मंजिल उनको जो अक्सर रुक जाते हैं
लड़ते रहे जो आखिरी तक, वो सब कुछ  बदल लाते हैं।
नदियों से सीख मुसीबतों से भीड़ जाना है कैसे
तेरी धार की ठोकर से ही तू रास्ता बना पायेगा।
यकीन रख खुद पर हर मंजर बदल जायेगा।।


*आगे बढ़ते रहे बस यही जिंदगी है यकीन रखिये खुद पर आप में हिम्मत है और एक दिन आप सब बदल देंगें। आप अकेले ही बहुत है, लोग साथ नहीं कोई बात नहीं खुद का साथ रखिये कभी धोखा नहीं खाएंगे।बहुत बड़ा लेखक नहीं हूँ पर जिंदगी में जो हमने अपनी आँखों से देखा और समझा वो यही है कि सब बदल जाता है ज़ब इंसान खुद पर भरोसा करके आगे बढ़ना शुरू करता है। शुरुआत बड़ा भारी होता है पर आगे जिंदगी खुशियों के रंग में घुल जाती है।
मस्त रहिये अपने में, मेहनत कीजिये आगे बढिये सब और खुद पर यकीन रखिये।

पाठकों से अनुरोध -
कविता में किसी भी प्रकार कि त्रुटि हो तो जरूर बताये।

आप सभी के प्यार और साथ के लिए बहुत बहुत आभार 🙏🙏

Yourquote  👈(click here )
Facebook   👈(click here)
Instagram   👈(click here)
Picture over there 👈(click here)

अन्य कविताएं भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
धन्यवाद 




Friday, December 24, 2021

कविता - रणक्षेत्र

                                                                   कविता  -  रणक्षेत्र 
हो गया है युद्ध घोष 
रण भूमि को कूज किया जायें,
इस धर्म अधर्म के युद्ध में
निश्चित धर्म कि विजय कि जायें।

 कह दो माताओं बहनों से
 तैयार आरात्रिक थाल की जाए,
 वीरों को जाना है रण में
 शीघ्र ही विजय तिलक कि जायें।

 लेकर आओ अस्त्र-शस्त्र सब
 इनकी भी प्यास बुझाई जाए,
 शत्रु रक्त कि धारो से
 रण भूमि नहेलायी जायें।

कुरुक्षेत्र कि भूमि को
सन्देश एक भिजवा दी जायें,
आंख मुंद कर बैठे अब ये
यदि रक्तपात ना देखी जायें।

चैन से मै ना सो पाया हूँ
ना जाने कितने वर्षो से,
तब शीतल होगा ह्दय मेरा
जब कुरुवंश का नाश हो जायें।

अंतर्मन में जलती ज्वाला में
हस्तिनापुर राख हो जायें, 
जो भी  हो परिणाम युद्ध का
बस प्रचंड महासंग्राम हो जायें।

ना भूल सका हूँ लाक्षा गृह को
द्युत क्रीड़ा सभा ना भुला जाये 
खुले केस है द्रौपदी के
ह्रदय विषाद कि अग्नि जलाये।

अज्ञातवास का विष पिया है
 वो पीड़ा कैसे बतलाई जायें,
जिस आग में तपता है तन मेरा
उसे युद्ध ही शीतल कर पाए।

महादेव कि है सौगंध
जो होना है ओ हो जायें
यमदूत स्वयं रण को आये
तो लौट के वापस जा न पाएगा।

है केशव! अब मुझको जाने दो
उस रस्ते पर जो कुरुक्षेत्र ले जायें,
यही था जीवन का लक्ष्य मेरा
कि नियति  मुझे रणक्षेत्र  ले जायें।

कलम - विकास पटेल 

*यह कविता महाभारत के उस योद्धा पर आधारित है जो हमेशा चाहते थे कि युद्ध हो।  उनके हृदय कि अग्नि कभी शांत नहीं हुई। जब श्री कृष्ण ने यह कहा कि शांति समझौता अस्वीकार कर दिया गया है उस समय उनके मनोदशा और संवाद को दर्शाने कि कोशिश कि गई है। किसी कि भावनाओ को शब्दो में बता पाना नामुमकिन है, फिर कुछ पंक्तिया इसमें कभी भी सक्षम नही हो सकती।यह कविता भीम दर्पण महारथी भीम के अंतरात्मा का प्रतिबिम्ब है।


* किसी पी प्रकार कि त्रुटि एवं सुझाओ का स्वागत रहेगा।

Yourquote  👈(click here )
Facebook   👈(click here)
Instagram   👈(click here)
Picture over there 👈(click here)

अन्य कविताएं भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
धन्यवाद 

Monday, October 18, 2021

धर्म पथ

                               ( धर्म पथ )

धर्म के पथ पर कदम बढ़े हैं 
अंगारे भी फूल बने
है संकल्प निर्माण का जो 
तिनका तिनका अब शूल बने।।

 हे मातृभूमि हे माता जननी
 शुभ आशीष आपका हो
 मार्ग हमारा कठिन बहुत
 संकल्प हमारा त्रिशूल बने।।

 मातृभूमि की सेवा में
 कमी कोई ना रह जायें 
 जो तोड़ के खुद को अर्पण कर दे
 हम ऐसे त्यागी फूल बने।।

 जिन मक्कारो ने छीन रखी है
 सुख शांति अपने लोगों की
 उनके जीवन की राहों में
 हम समय बड़ा प्रतिकूल बने।।

 जो बनके दीमक चाट रहे हैं
 भारतवर्ष की एकता
 काट के इनकी शाखाएं
 इनको हम निर्मूल करें।।

खा कर के जो नमक राष्ट्र का
सडयंत्र रचाया करते है
कर बेनकाब इन सर्पो को
नाश इनका मूल बने।।

 चलना है अब हो संगठित
 युग परिवर्तन के पथ पर
 जो जोड़ सके मानवता को
 हम ऐसे अविचल फूल बने।।

🖋️ विकास पटेल

 * कविता मे किसी भी प्रकार की त्रुटि को अवश्य बताये
    इसके साथ ही पाठको के सुझाओ का स्वागत है।।

*यह कविता मेरे मित्र हर्ष देवांगन( महामंत्री ) भारतीय जनता युवा मोर्चा (सक्ती)  एवं भारतीय जनता युवा मोर्चा (सक्ती ) के अन्य सभी सदस्यों द्वारा किये गए सराहनीय कार्यों से प्रभावित होकर लिखी गई है।यह कविता आप सभी के देश हित की सोच एवं उच्च महत्वकांक्षा  को बतलाती है है यह कविता अवश्य ही आपका मनोबल बढ़ायेगी।

आशा है भारतीय जनता युवा मोर्चा ( सक्ती) प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए राष्ट्र हित मे सदैव कार्य करेंगी।

शुभकामनायें एवं अपेक्षाओं के साथ...




Yourquote 👈👈(click here)

Instagram👈👈(click here)







Monday, September 6, 2021

महाकाल स्तुति

                       ( महाकाल स्तुति )

शांत और सौम्य हैं जो
 है समेटे काल को
काल के भी स्वामी है जो 
नमन  है महाकाल को।1।

शक्ति जिनसे शक्ति पाती 
है जगत विस्तार को
जिनसे ऊर्जा सूर्य पाता 
नमन है महाकाल को।2।

निराकार है सर्वव्यापी
शून्य से ब्रह्माण्ड तक
अंत से प्रारम्भ हो जो 
नमन  है महाकाल को।3।

अग्नि का जो तेज है
वायु का जो वेग है
जो है हलाहल का भी हल
नमन है महाकाल को।4।

नाथ मेरे प्राण के जो
प्राण जो संसार के
हैं जो देवो के भी देव 
नमन है महाकाल को।5।

त्रिगुणो से जो परे
है त्रिलोचन त्रिपुर नाशी
त्रिकाल के जो स्वामी है
नमन है महाकाल को।6।

जिनकी भुजाओं मे बसी है
शक्ति समस्त ब्रम्हांड की
शोभायमान पीनाक जिनसे
नमन है महाकाल को।7।

योग जिनसे जन्म लेता
वेद जिनसे ज्ञान है
जिनसे कला ने रूप पाया
नमन है महाकाल को।8।

जन्म लेता जगत जिनसे
मृत्यु पाता पाप है
सर्वनाशी क्रोध जिनका
नमन है महाकाल को।9।

केंद्र मेरे कर्म का 
ज्ञान मेरा आप हो
धूल जिनके चरणों का मै
नमन है महाकाल को।।10।।

🖋️कलम - Vikas patel


*पाठको से अनुरोध है की किसी भी प्रकार की त्रुटि या किये जा सकने वाले सुधारो को अवश्य ही कमेंट कर के बताये


If you like my poems please do comments
And share with your friends.

Please follow me on my other social account.

Mahadev image website👈👈(click here)

Yourquote 👈👈(click here)

Instagram👈👈(click here)

Facebook 👈👈(click here)

Thursday, August 5, 2021

रंग

                            कविता - रंग



सीखता जा रहा हूं मैं
आगे बढ़ते हुए जिंदगी में
दो सक्ल लेकर लोग
जिया कैसे करते हैं।

मिलता हैं ज़ब थोड़ा सा
रंग बदल सा जाता है
जिसने खींचा था हाथ कभी
उससे ही नफरत करते हैं।

बुरे वक़्त में साथ था जो
दिन बदला उसका मोल गया।
वो उड़ते हुए हवा में अब
जमीन न देखा करते हैं।

जो चिड़िया कभी सहारा था
सुने और अकेलेपन  का
भीड़ साथ है खड़ी हुई  
पानी ना पूछा करते है।

जिसने पोछे हैं आँसू उनके 
उसके आँखो से धार बहे
काले ऐनक के आड़ में वो
नजरें फेरा करते हैं।

मसाल जलाकर अंधेरों में
जो आगे आगे चलता था
उनके जब से सितारे चमके
तुम फीके हो कहते फिरते हैं।

हर शख्स मतलबी है यहाँ पे
काम है तुमसे, नाम तुम्हारा
भगवान जिसे वो कहते थे 
उसे  पत्थर की मूरत कहते हैैं।

यही लिखा है इंसानों के
अर्थ और परिभाषा में
वक़्त बदलते ही इनके
रंग बदलने लगते हैं।


वक़्त बदलते ही इनके
रंग बदलने लगते हैं।।

**हो सकता है कविता मे कुछ त्रुटि हो अतः पाठको के सुझावो का स्वागत है।

कलम -विकास पटेल

If you like my poems please do comments
And share with your friends.

Please follow me on my other social account.

Yourquote 👈👈click here

Instagram👈👈click here

Facebook 👈👈click here

Instagram lines 👈👈click here

Thank you

Thursday, June 17, 2021

मंजिल


                       कविता - मंजिल



हाँ , थका हुआ तू बैठा है 
पर कब तक ऐसे बैठेगा।
यूं करके आंखे लाल तू अपनी 
कब तक खुद को कोसेगा।।1

सिर पर रख कर हाथ तू अपने
कब तक किस्मत पर रोयेगा।
हो ना सकेगा कुछ अब कह कर 
कब तक ऐसे सोयेगा।।2

घोर निराशा में रहकर
कुछ ना बदल तू पायेगा 
जो आँख मुंद कर बैठ गया तू 
लक्ष्यहीन हो जायेगा।।3

कोसेगा जो तू किस्मत को
कभी ना आगे  आएगा।
दे कर दोष दूसरों को
नया सिख ना पायेगा।।4

एक बार तू हारा है 
पर आगे तू ना हारेगा
बैठेगा जो हो हताश तू 
जीत की आस भी हारेगा।।5

दौड़ नहीं तो चल तो सही
तू भी आगे बढ़ जायेगा।
हाँ थोड़ी सी देर सही
अपनी मंजिल तू पायेगा।।6

कुछ तो रही है कमी कहीं पे
जो तू ख़ोज ये पायेगा |
काम वहीं पर करके फिर से 
जीत को गले लगाएगा।।7

चारो ओर अंधेरा है 
तू खुद ही बन जा उजियारा।
बन के सूरज चिर निकल
ये घोर हार का अँधियारा।।8

कस कर बांध कमर अपनी
फिर देखेगा  ये जग सारा।
मिलती ही है मंजिल उसको
जो देख हार भी ना हारा ।।9


* हो सकता है कविता में कुछ त्रुटि हो, अतः आप सभी पाठकों के सुझाओं का स्वागत है।


कलम - विकास पटेल 👈(click here to go to                                             my yourquote )

Monday, March 22, 2021

माटी का पुतला

                     कविता - माटी का पुतला 

ये माटी का पुतला 
पल भर में राख हो जाता है ।
बांध कर हमें यादों की जंजीरों में 
खुद आज़ाद हो जाता है ।।

उसके चेहरे हमें याद आते है 
ओ हमेशा के लिए हमें भूल जाता है।
रातों में जागने को मजबुर कर अपनो को 
खुद चैन कि नींद सो जाता है ।।

जिसे देख कर खुश होते थे 
उसकी तस्वीर देख आंख भर जाता है ।
तोड़ कर हमसे सारे रिश्ते 
ओ नए सफर को चला जाता है ।।

कुछ सपने जल जाते है
कोई आश रह जाता है ।
भूल जाता है सब कुछ ओ
खुद याद बन दिलो मे रह जाता है

ओ शख्स भले ही जैसा था
पर अब तो सिर्फ रुलाता है ।
शायद ओ खुश है सब कुछ छोड़
तभी तो वापस ना आता है ।।

रूह बना दी गई अमर
और देह खाक हो जाता है ।
ये माटी का  पुतला
पल भर मे राख हो जाता है ।।

ये माटी का पुतला............





*हो सकता हैं कविता मे कुछ कमिया हो, अतःआप सभी पाठको के सुझाओ का स्वागत हैं ।

कलम - विकास पटेल 






कविता - वीर